बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
उत्तर -
बाँधनी के प्रकार
बाँधनी के दो परम्परागत प्रकार हैं-
(1) घरचोला - घरचोला एक पारम्परिक परिधान है। जिसे राजपूत स्त्रियाँ दुल्हन की
ओढ़नी के रूप में प्रयोग करती हैं। घरचोला नाम से ऐसा लगता है कि घर में पहना जाने वाला वस्त्र। इसकी मुख्य विशेषता यह होती है इसमें कपड़े पर गोल्डन धागे से चौकोन बना लिया जाता है फिर इस चौकोन में बाँधनी के विभिन्न डिजाइन बनाई जाती हैं। विभिन्न डिजाइनों में ज्यामितीय और फूल पत्ती से सम्बन्धित पैटर्न बनाए जाते हैं। घरचोला वस्त्र में उपयोग किए जाने वाले रंगों में गहरा लाल, पीला और हरा मुख्य होते हैं। घरचोला में अधिक सजावट की जाती है। सौराष्ट्र के घरचोला सबसे उत्तम माने जाते हैं। परम्परागत शुभ आकृतियों में चिड़िया, हाथी, नाचती हुई गुड़िया का प्रयोग किया जाता है।
(2) चुनरी - यह बाँधनी कला का एक महत्वपूर्ण प्रकार है। इसमें घरचोला की अपेक्षा सजावट होती है। इसमें बाँधनी का काम कम रहता है। इस प्रकार अनेक बिन्दु मिलकर डिजाइन बनाते हैं। चुनरी भी एक उत्सवी परिधान है। हिन्दू धर्म में चुनरी का वस्त्र एक भाई अपनी बहन को रक्षा बन्धन के दिन देता है। इस वस्त्र को वीरा भेंट कहा जाता है। उपहार में दी जाने वाली ओढ़नी के वस्त्र अधिकतर हरे रंग के होते हैं। जबकि शादी-विवाह में दिए जाने वाले अधिकतर लाल रंग के होते हैं।
सी० आर० दास के अनुसार पहले चुनरी दो तरह की बनाई जाती थीं। पक्की चुनरी और कच्ची चुनरी। पक्की चुनरी बनाने के लिए मोटा और खुरदुरा कपड़ा लिया जाता है। इसे धोकर कैस्टर ऑइल और खार (अशुद्ध सोडियम कार्बोनेट) को बराबर मात्रा में लेकर ठण्डे पानी में रात भर भिगोकर रखते हैं दूसरे दिन जब यह सूख जाती है। इसके बाद इसे धोकर सुखाया जाता है। सूखने पर गेरू से डिजाइन को छापा जाता है और उसके पश्चात् गठान बाँधी जाती है और रँगा जाता है।
कच्ची चुनरी रंगने में कच्चे रंग का उपयोग होता है। इनके लिए मलमल जैसे कपड़े का उपयोग होता है।
पक्की चुनरी में डिजाइन के अनुसार नाम दिए जाते हैं-
(i) एकदली— इसमें छोटे चौकोर एवं गोलाकार डिजाइन होते हैं।
(ii) तिदली - इसमें गोलाकार एवं चौकोर डिजाइन तीन-तीन के झुण्ड में होते हैं।
(iii) चौबन्दी - इसमें गोलाकार एवं चौकोर डिजाइन चार चार के ग्रुप में रहते हैं।
(iv) सतबन्दी — इसमें गोलाकार एवं चौकोर डिजाइन सात-सात के ग्रुप में रहते हैं।
बाँधनी के मुख्य मोटिफ
बाँधनी में परम्परागत रूप से जो नमूने बनाए जाते हैं उसमें जानवर, पक्षी, फूल और नाचती हुई गुड़िया आदि प्रमुख हैं। जब डिजाइन में पक्षियों व जानवरों का उपयोग किया जाता है तो उसे "शिकारी" कहा जाता है। "घनक" नामक डिजाइन में फूल तथा फूलों के गुच्छे गोलाकार तथा चौकोर रूप में उपयोग में लाए जाते हैं। ये काफी सुन्दर दिखाई देते हैं इनका उपयोग स्कार्फ में किया जाता है। "लहरिया" में "चिरा" नामक डिजाइन रहता जिसमें तिरछी धारियाँ रहती हैं। इसके अलावा भी कुछ प्रमुख डिजाइन हैं जो निम्न हैं-
(1) डंगर शाही ओढ़नी- - इस प्रकार की ओढ़नी में पहाड़ जैसी आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
(2) लड्डू जलेबी - इस डिजाइन में बीच-बीच में बड़े गोले व चारों ओर छोटे-छोटे गोले बनाए जाते हैं।
(3) पोमचा - इस डिजाइन में पूरी सतह पोली होती है।
(4) खत का लहरिया- इसमें तिरछी धारियाँ होती हैं। इसकी में चिरा नामक डिजाइन प्रमुख है। इसके अतिरिक्त और भी डिजाइन बनाई जा सकती हैं। यदि हम चौकोर, गोलाकार, स्टार की आकृति, जिग-जैग लाइन या एक दूसरे को काटती हुई पट्टी बनाना चाहे तो कपड़े की लम्बाई चार तह मोड़कर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर इच्छित चौड़ाई के पट्टे लाने के लिए बाँध दिया जाता है। इसके बाद कपड़े को रंग लेते हैं। साधारण तौर पर छोटे-छोटे गोले बाँधकर अनेक डिजाइनों की सृष्टि की जा सकती है।
मुर्शीदाबाद में बाँधने वाले धागों को कई रंगों से रँगा जाता है जिससे डिजाइन में इच्छानुसार रंग के गोले बन जाते हैं। सबसे अच्छी व उत्तम बाँधनी गुजरात व राजस्थान में बनाई जाती है जिन्हें उनमें दी गई गठानों की संख्या के दोहराव के आधार पर नाम दिया जाता है।
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